Saturday, June 19, 2010

सुकून

सुकून के दो पल एक पथिक की प्यास,

मंजिल है दूर पर पाने की आस,

थोडा है अभी पर कर रहा हां थोडे और की तलाश,

बस अब महक जाए ये गुलिस्तान सा जीवन न रहे बेसुध जैसे फूल पलाश।

-विनीत 'The Bard'